खोटे
सिक्के
आँखों
में उसके,
बोहत
थे सपने,
लेकिन
किस्मत में लिखे,
खोटे
सिक्के थे उसके,
किताबों
से रिश्ता,
मजबूरी
के बाद्लो में गुम था,
ढाबे
की गलियों में,
नाम
उसका कहीं गुम था
दिन
भर पड़ा रहता,
गंदे
बर्तनो के बीच,
रात
को लाता,
झूठन
कुत्तों से खींच,
नन्ही-सी
ज़िंदगी से,
बस
यही नुस्खे सीखे,
क्योंकि
किस्मत में लिखे खोटे सिक्के थे उसके,
स्कूल
की बस जब वो निहारता,
मन
ही मन बस मुस्कुराता,
केवल
बच्चों की भीड़ देखता,
बस
वहाँ से हटके,
क्योंकि
किस्मत में लिखे,
खोटे
सिक्के थे उसके,
एक
हाथ में कूड़ा
दुसरे
में थामा पोछा,
क्योंकि
इसके अलावा उस तक,
कुछ
ना पहुँचा पाया,
जल
गयी किताबे,
पेट
की आग में,
किल्ल्कारियाँ
हो गयी भस्म ,
भट्ठी
की आग में,
माँ
की ममता ,बाप
का दुलार,
सब
मर गए चक्की में पिस के,
क्योंकि
किस्मत में लिखे खोटे सिक्के थे उसके,
आँखों
में उसके,
बोहत
थे सपने,
लेकिन
किस्मत में लिखे,
खोटे
सिक्के थे उसके..........
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