युवा शक्ति की विजय कब?
युवा शक्ति पर सेंध क्यूँ? , युवा शक्ति की विजय कब?
युवा एक शक्ति है तभी तो उसकी भक्ति
है। आज हर राजनीतिक दल युवाओं को रिझाने मे कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ रहे, और छोड़ें
भी कैसे एक सौ पाचीस करोड़ की भारतीय आबादी मे से आधे से ज्यादा आबादी युवा है और
कुछ महीने पहले खत्म हुये लोकसभा चुनाव के आंकड़ो के मुताबिक भी कुल वोटिंग प्रतिशत
मे से साठ प्रतिशत लगभग युवा मतदाता था,जिसमे से दस करोड़ नए युवा मतदाता जिसने पहली
बार वोते डाला। तो ये सब उस शक्ति के बारे मे बतलाता है जो आज भारत जैसे भव्य देश
की ताकत है लेकिन क्या सवाल तो यह है की इस ताकत को आज तक वह हक मिला है जिसकी वो
हकदार है या सिर्फ यह उन राजनीतिक डालो के लिए सत्ता पर काबिज होने का मात्र
हथियार बनते आ रहे है। और समस्त पार्टियो ने बस चुनाव के समय सत्ता मे फतह पाने के
लिए इन युवाओं को बहलाकर सिर्फ इस्तेमाल किया? सवाल अनेक है
लेकिन युवाओं के “अच्छे दिन” आना अभी बाकी है।
सोशल साइट के इस जमाने मे आज युवाओं
को अपनी ओर खिचने के साथ वाद-संवाद करने मे,जिस तरीके से आज
इन साइट्स पर युवाओं का मनोरंजन होता है उसी तारीके से विरोधियों का मखोल बताकर, अपने पास
खिचने के लिए यह राजनीतिक दल सिर्फ एक पोस्ट करते है। और करोड़ो युवाओं से
सीधे-सीधे जुडते है। अपनी बात पहुंचाने और सीधे करोड़ो युवाओं से इन साइट्स के
द्वारा संदेशा पहुंचाने की बदोलत केजरीवाल
, अन्ना आंदोलन हो या मोदी को युवाओं के दिल जितना है और तो और या फिर तो बीजेपी का किला फतेह करना। वह इन सोश्ल
साइट्स द्वारा इन युवाओं से सीधे जुड़कर अपनी ओर आकर्षित करके जिस तरीके से इन
लोगों ने युवाओं को जोड़ा लेकिन क्या बदले मे इन युवाओं का कुछ उद्धार हुआ? केजरीवाल
और अन्ना आंदोलन के युवाओं के साथ के बिना सफल होते? क्या केजरीवाल
को दिल्ली की कुर्सी बिना इन युवाओं के साथ,मिलती? क्या
अन्ना की दहाड़ बिना युवाओं के साथ के बिना गूँजती? क्या मोदी और
भाजपा की उपप्रत्याशित जीत इन युवाओं के समर्थन के बिना पूरी होती?- नहीं ।
लेकिन बदले में इन युवाओं को क्या मिला? क्या
केजरीवाल ने 44 दिनो मे पद छोड़कर इन लाखो करोड़ों युवाओं के साथ उनकी आशाओं
के साथ धोखा नहीं किया? क्या अन्ना की निष्क्रियता उन युवाओं के साथ धोखा नहीं है? काँग्रेस
की बात करें उनका युवा जोश तो उन्ही की पार्टी के घोटाले ने चीन लिया! अब बारी है
मोदी की – तो अभी कुछ माहिने पुरानी सरकार जो युवाओं के दम पर रोजगार के वादे के
साथ सत्ता पर काबिज हुयी है की परीक्षा अभी बाकी है क्यूँकी कुछ महीने मे शायद हम
धोखा नहीं कह सकते बल्कि वक्त दिया है बड़े जनमत के साथ युवाओं के अच्छे दिन आने का
लेकिन अगर अब भी युवाओं के अच्छे दिन नहीं आयें तो सिर्फ युवाओं के पास सभी दलों,नेताओं,का
बहिष्कार करने के अलावा कोई चारा नहीं बचेगा !
मौजूदा परिदृश्य की बात करें तो आज
का युवा भटका हुआ है। “लेकिन इस सब के पीछे उसका खुद न इतना दोष होकर, दोष है
हमारी सरकारों का। क्यूंकी देश मे कॉलेजो मे एड्मिशन से लेकर भरी-भरकम फीस , डोनेशन
प्रक्रिया बड़ी-बड़ी डिग्रियों के बाद भी बेरोजगारी या रोजगारी है भी है तो
इतनी तनख्वा मे शायद की मजदूर भी उनसे ज्यादा दिहाड़ी पाएँ, उसी के साथ जो
आरक्षण प्रक्रिया मे युवाओं को आपस में बाँट दिया है उस से उंच नीच और
प्रतिस्पर्धा ने खुद ही जन्म ले लिया है और आपस मे नफरत पैदा कर दी है। जब सेना की
भर्ती निकलती तो युवाओं का हुजूम और इस नौकरी को पाने की चाहत देखने से लगता है की
हिंदुस्तान जैसे देश में कोई अपने देश की सुरक्षा करना चाहता है और बटालियन की कमी
को पूरा करना चाहता है लेकिन हमारी देश की प्रणाली और नीति इतनी लाचार है की यहाँ
की भर्ती के समय इसका असली रूप स्वरूप सामने आता है, अगर उद्योग
लगाना चाहे तो इस देश के कानून की जटिलता, रिश्वतख़ोरी की
फांस,लंबी प्रक्रिया आदि॰। इन सब के जंजाल के बारे मे जब युवा सोचता है तो कदम
पीछे कर लेता है। अगर कोई खेलो मे जाने की इच्छा रखता है जिसे क्रिकेट, हॉकि,फूटबाल
आदि तो यहाँ भी कई बार होनहार खिलाडीयों को जुगाड़ और पैसे की कमी के चलते टीम मे
चयन से वंचित रहना पड़ता है, अगर क्रिकेट जैसे लिकप्रिय खेल की बात करें तो हमारे देश में
आज ग्रामीण छेत्रों मे इतनी प्रतिभायेँ है, उन्हे बस मौके
और प्रशिक्षण की तलाश है और बस हमारे अच्छे खिलाड़ियों की कमी पूरी! और उनको भी बड़े
स्तर पर मौका देकर देश के लिए मौका दे सकते हैं ताकि गाँव को आगे बढ़ाया जा सके
लेकिन आज तक घोटाले-जुगाड़ के चलन ही चलता आया है, जिसने हमारे
ग्रामीण प्रतिभाओं को पीस रखा है। आज ग्रामीण युवाओं में भी अपने-अपने हुनर के
अनुसार प्रतिभा की कमी नहीं लेकिन हमारी सरकारों को इन्हे गाँव से निकाल कर उनका
का आकलन करके इन्हे प्लैटफ़ार्म देने की जरूरत है
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