Tuesday, 26 January 2016

किस्मत

किस्मत

किस्मत भी क्या-क्या खेल खेलती है,
आज यहाँ तो कल वहाँ पे हम होते है।
पंछी बन के कभी गगन मे उड़ते है,
तो कभी कंकर बन के जमीन पे गिरते है।
सोच सोच के दिल ये सोचता है,
जाने किन उलझनों मे ये रहता है।
कभी अपने भी बेगाने हो जाते है,
तो कभी बेगानो के साथ हम मुस्कुराते है।
कर्ज है उन एहसानों के हम पे
जिन के सहारे मुस्कुरा रही ये धरती है,
वरना लोग न जाने क्या क्या करते है,
कमजोर समझ दर्द पे दर्द इनाम देते है।
माना की जमाने मे बुरे हम सही,
फिर क्यों दिल वो हमसे लगाते है,
जब पता हैं उन्हे हमारी आदत सारी,
फिर क्यों हम पे एहसान करते है।
तोड़के दिल हमारा वो तो,
अपना हक हमपे जताते है,
बड़े प्यार से फिर कहते है,
हम तो आप को अपना मानते है।
जिंदगी के रुख बड़े अलग होते है,
मुस्कुरा के गम सारे पीने पड़ते है,
जाने क्या दिन देखने पड़ते है, आखो मे आँसू होकर भी,
होतो पे मुस्कुराहट सजनी पड़ती है।
-योगेश मोरे

मुंबई (महाराष्ट्र) 

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