Wednesday 29 June 2016

एनएसजी (NSG) : विफलता कम, जल्दबाजी ज्यादा

एनएसजी (NSG) : विफलता कम, जल्दबाजी ज्यादा

अब इसे कूटनीतिक विफलता कहें या कमजोर तैयारी, भारत फिलहाल न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुपयानी एनएसजी में शामिल नहीं हो पाया. इसको लेकर जहां अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत को करारा झटका लगा, तय है कि संसद का मानसून सत्र इसकी भेंट चढ़ेगा. कितना चढ़ेगा, यह वक्त बताएगा.

आगे किस पर कितना भरोसा करना सही होगा, यह विमर्श का विषय है. फिलहाल इस मुद्दे पर चुप रहकर, जमीनी तैयारी करना ही बेहतर होगा. एनएसजी के उद्देश्य और जरूरतें ही काफी कुछ साफ कर देते हैं, तब भी भारत ने जल्दबाजी की, नतीजा सामने है. लेकिन महत्वपूर्ण यह भी कि भारत ने एनएसजी की सदस्यता के लिए अपनी ओर से पहल नहीं की थी. बल्कि कहें कि अमरीका ने उकसाया और साथ देने का भरोसा जताया.

सबको पता है कि अमरीका, व्यापारी है. वह एक सीमा तक साथ देगा, उससे ज्यादा नहीं. जहां तक भारत के लिए समर्थन का सवाल है, वे देश समर्थन करेंगे जिनको इस बात की संभावना दिखेगी कि भारत उनके परमाणु संयंत्रों की बिक्री का, कितना बड़ा बाजार बनेगा.कहने की जरूरत नहीं कि किसका, कितना हित जुड़ा है और कौन कितना साथ देगा. दो बातें विशेष महत्व की हैं. पहली यह कि इसकी पहल 1974 में तब हुई, जब भारत ने पोखरन में पहला परमाणु परीक्षण किया था और दूसरी यह कि एनएसजी उन देशों का समूह है जो परमाणु अप्रसार संधि यानी एनपीटी पर हस्ताक्षर करते ही, अपने आप सदस्य मान लिया जाता है.

जाहिर है, एनएसजी के गठन की तात्कालिक जरूरत, भारत का पर कतरना था. अब जबकि सारा कुछ एक क्लिक पर उपलब्ध है, एनएसजी की वेबसाइट से ज्ञात दिशा निर्देश काफी कुछ साफ कर देते हैं जो परमाणु अप्रसार की विभिन्न संधियों के अनुकूल हैं.

इनमें परमाणु अप्रसार संधि, साउथ पैसिफिक न्यूक्लियिर फ्री जोन ट्रीटी, पलिंदाबा समझौता यानी अफ्रीकन न्यूक्लियर वीपन फ्री जोन ट्रीटी, ट्रीटी फॉर द प्रोहिबिशन ऑफ न्यूक्लियर वीपंस इन लैटिन अमेरिका, बैंकॉक समझौता यानी ट्रीटी ऑन द साउथ-ईस्ट एशिया न्यूक्लियर वेपन फी जोन तथा सेमिपैलेटिंस्क समझौता अर्थात द सेंट्रल एशियन न्यूक्लियर वीपन फी जोन ट्रीटी शामिल हैं.

इस समूह में 48 देश शामिल हैं तथा 1994 में स्वीकारे गए दिशा निर्देशों के अनुसार कोई भी सप्लायर उसी समय, ऐसे उपकरणों के हस्तांतरण की स्वीकृति दे सकेगा, जब वो पूर्ण संतुष्ट हो जाए कि ऐसा करने पर परमाणु हथियारों का प्रसार नहीं होगा.

लेकिन इन दिशा निर्देशों का क्रियान्वयन हर सदस्य देश, अपने राष्ट्रीय कानून और वहां की कार्यप्रणाली के मुताबिक ही करेगा. इस समूह में सर्वसम्मत फैसला होता है जो इसकी कार्य योजना बैठकों में लिए जाते हैं, जो हर वर्ष होती है.

इस बार 24 जून को सोल में विशेष सत्र बुलाया गया. उसके पहले 23 जून को ताशकंद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात के बाद ही यह साफ हो गया था कि चीन रोड़ा बनेगा. माहौल, पहले ही दिखने लगा कि चीन अड़ंगा लगाएगा. चीन ने भारत का कब साथ दिया? ऐसे में हमें चीनी राष्ट्रपति के समक्ष दावे पर विचार करने की बात कहने से बचना था.

जगजाहिर है कि चीन, पाकिस्तान को भी इस समूह का सदस्य बनाए जाने का पक्षधर है. जब भारत, चीन के नेतृत्व वाले संगठन, ‘शंघाई सहयोग परिषदकी सदस्यता ले रहा था, तब भी एनएसजी में भारत के प्रवेश पर अड़ंगा चीन ने ही लगाया था. भविष्य में यह सब ध्यान में रखना होगा.

भारत के नजरिए पर भी ध्यान देना होगा. भारत ने शुरू से ही परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए, क्योंकि उसका मानना है कि ऐसा करने से अपने परमाणु हथियारों से हाथ धोना पड़ेगा. अपवाद स्वरूप 2008 में भारत-अमरीका परमाणु समझौता, तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश की निजी कोशिशों की परिणिति थी तथा उन्होंने ही सदस्य देशों को इसके लिए राजी किया था.

अब दूसरी बार ऐसा ही करने का मतलब यह हुआ कि इस संगठन के मूल स्वरूप को ही बदलना है. भारत की इस बात में भले ही दम हो कि बिना एनपीटी पर हस्ताक्षर किए, वो परमाणु कार्यक्रम अप्रसार की हर कसौटी पर खरा उतरा है. लेकिन इसके लिए एनएसजी का स्वरूप बदलना कितना उचित होगा, वह भी तब, जब चीन इस पर हस्ताक्षर के बावजूद, कई मौकों पर धड़ल्ले से शर्तो को धता बताता आया है.
जगजाहिर है कि पाकिस्तान व उत्तर कोरिया के परमाणु हथियारों के पीछे प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से चीन ही होता है. इतना सबके बावजूद इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि अधिकांश देश भारत के समर्थन में खुलकर आए थे. उसमें भी अमरीका, ब्रिटेन और फ्रांस जैसे मजबूत देशों का शामिल होना बताता है कि विश्व समुदाय में भारत की हैसियत काफी सम्मानजनक है.

लेकिन इस बात का मलाल जरूर है कि सही ढंग से परिस्थितियों का आकलन पहले ही किया गया होता तो इस बड़ी किरकिरी से बचा जा सकता था. हां, जरूरत इस बात की है कि भारत को विश्व समुदाय के किसी भी समूह में शामिल होने के लिए ऐसी जल्दबाजी आगे नहीं दिखानी चाहिए.

नि:संदेह भारत को विश्व समुदाय में तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्था के रूप में देखा जा रहा है, जिससे दबाव और सम्मान के साथ छवि भी बदली है. जरूरत इस बात की है कि भविष्य में कोई भी कदम बजाय जल्दबाजी के, काफी सोच-विचार कर, रणनीति अपनाकर, अनुकूल समय पर उठाया जाए.

-राहुल खंड़ालकर

योग की कक्षा -एक बार फ़िर

योग की कक्षा -एक बार फ़िर

भारत मे दूसरे अंतर्राष्टीय योग दिवस का आयोजन 21 जून को चंडीगढ़ के कैपिटल कॉंप्लेक्स में किया गया। जिसमे प्रधानमंत्री मोदी जी ने भाग लिया। दरअसल विगत वर्ष संयुक्त राष्ट्र ने नरेंद्र मोदी की पहल पर 21 जून को योग दिवस के रूप में घोषित किया था। 

               
इस वर्ष भारत समेत विश्व के 192 देशों ने योग दिवस मनाया। यमन मे गॄह युध्द के कारण योग दिवस ना मनाया जा सका। अंतर्राष्टीय योग दिवस के मौके पर नरेंद्र मोदी द्वारा एक अभिभाषण मे कहा गया कि 'पूरे विश्व का योग को लेकर देश को पूरा समर्थन मिला इसलिए देश मे भी योग पर राजनीति छोड़ सबको एक साथ आगे बढ़ना चाहिए। योग का शारीरिक मानसिक और आत्मा से सम्बन्ध है इसलिए हमें अपने पूर्वजों की इस विरासत को आगे बढाना चाहिए।' 21 जून को मनाए गए इस योग दिवस पर लगभग 30 हज़ार लोगों ने एक साथ योग किया। 

                
दूसरे योग दिवस का उत्साह सरकारी कार्यालयों से लेकर निजी संस्थानों तक मे देखा गया है फ़िर चाहे वह पी डब्लू डी कार्यालय हो या कोई व्यापारिक संस्थान, सभी जगह इसकी उत्सुकता देखने को मिली। इतना ही नहीं देश के कई राज्यों मे मानसूनी बारिश भी योग दिवस के उत्सव को धो नही पाई।

            
वहीं यदि हम विरोध की बात करें तो यह कोई पहली बार नहीं है कि जब सरकार द्वारा कोई पहल की गई हो और उसमे विपक्ष ने कोई आना-कानी ना की हो। यदि सीधे शब्दों मे कहें तो भारत मे किसी भी सरकार मे विपक्ष का विरोध करना एक परम्परा सा बन गया है।विगत वर्ष मनाए गये योग दिवस पर विपक्ष का गुस्सा और आपत्तिजनक व्यवहार देखने को मिला था, उसी प्रकार इस बार भी वही बहिष्कार देखने को मिला। भारत को संस्कृतियों और धर्मों के संगम का देश कहा जाता है परंतु देश मे किसी कार्यक्रम को लेकर राजनीति ना हो ऐसा बहुत कम देखने को मिलता है। गत वर्ष कुछ मुस्लिम कट्टर वादियों द्वारा योग करने को धर्म के विरुद्ध बताया गया था अपितु ऐसा नही है। मुस्लिम समाज मे अदा की जा रही पाँच वक्त की नमाज़ भी कुछ इस तरह से अदा की जाती है कि उसे हम योग की श्रेणी मे रख सकते है। यही कारण है कि इस बार विश्व के कई मुस्लिम राष्ट्रों ने भी इसमें अपनी भागेदारी निभाई ।

              
यह बेहद शर्मनाक बात है कि चंडीगढ़ मे योग दिवस के मौके पर विपक्ष का इसे लेकर बहिष्कार किया गया और साथ ही काले झंडे दिखाये गये। इस विरोध के पीछे राजनीति यह की जा रही थी कि मोदी द्वारा किया गया यह कार्यक्रम केवल एक ढोंग है, एक दिखावा है। गौरतलब है कि पंजाब मे जल्द ही विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। हालाँकि यह सच है कि योग कोई मोदी द्वारा जनता को दी गई देन नहीं, यह तो कालांतर से समाज मे प्रचलित है परंतु विगत कुछ वर्षों से लोग इसके लाभ को भूलते जा रहे है जिसके कारण प्रधानमंत्री द्वारा संयुक्त राष्ट्र के सामने इसे मनाने का एक प्रस्ताव रखा गया जिसे मान्य कर दिया गया। क्योंकि योग से आत्मा का परमात्मा से मिलन कहा गया है और कहा भी जाता हैं कि 'प्रथमहि सुख निरोगी काया' अर्थात आप निरोगी हैं तो यह आपके लिए संसार का सबसे बड़ा सुख है। विदेश मंत्रालय के अनुसार, इस बार अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर लोगों का जमावड़ा पिछले वर्ष की तुलना मे दोगुना था।

-रेहान अहमद

Tuesday 28 June 2016

मृगतृष्णा

मृगतृष्णा

जल ही जीवन है;
एक सरल. किंतु सारगर्भित वाक्य।
परंतु क्या केवल घोषणाएँ,
लघुपट, बैनर या संदेश काफी है
इस वाक्य को सार्थक करने में

कल ही स्कूलों में बच्चों को
यही तत्वज्ञान समझाया गया,
सिर्फ एक बूँद ही काफी है
प्यासे की तृष्णा मिटाने को।
फिर क्यों नलों से बहते अश्रु
देखकर भी नहीं पोंछते हम जानकार
बहती हुई यह जलधारा
हमको मुँह चिढ़ाती है
हमारे दोगुलेपन पर मानो
वही अनगिनत आँसू बहाती है।

जल है तो कल है
यह भी नारा पुराना है,
बरसों टैंकरों से बहता पानी
सड़कों पर ज्यों लाता निखार है।
बूँद-बूँद टपकता जल ही
कल पर हमारे हँसता है,
कथनी-करनी में इतने अंतर को,
वो भी शायद समझ न पाता है।

पिलाना जल, पुण्य का काम
सुना था मैंने बचपन से;
पर धूप से त्रस्त इक पगले को
वंचित देखा पानी से।
उसकी तड़प और लोगों की झिड़क-
देख रहे थे वो जो साक्षर थे।
देख तमाशा हैवानियत का ये
स्तब्ध रह गया बोतल का जल,
अब क्या रोना इंसानियत हेतु
अर्थी-सजा श्मशान-राह  में।

अब भी वक्त नहीं गुज‌रा है
मानव तू अब भी जाग;
पछतावे के आँसू का भी
वरना जल सूखा पड़ जाएगा।
अब नहलाओ प्रेम-स्निग्ध से,
मानव-तन को मन लौटाओ।
इस अविचारी, स्वार्थी जगत को
पावन कर, मानवीय बनाओ।

मैं-तू, तू-मैं, जड़ है हार की,
प्यार बाँटो, दया करो और फिर
जीत का परचम तुम फैराओ।
जल ही जीवन, प्रेम ही धर्म है
यह संदेश अब जब में फैलाओ।


-श्रीमती सुजाता कर्डिले


Interesting facts about India

Interesting facts about India 

1) THE FLOTING POST OFFICE

the floating post office in Dal lake Srinagar was istablished in Aug 2011. India has largest postal network in world. 1,55,015 posts offices and a single post office serves a population of 7,175 people.


2) KUMBH MELA
 Kumbh mela was the largesr gathering people mela with approx 75 millions pilgrims. Peoples are gathered so huge.


3) HIGHEST CRICKET GROUND IN WORL
The chail cricket ground in chail, Himachal pradesh is highest in tha world with an altitude of 2,444 meters. In 1893 it was built and it was also a part of chail military school.

4)IN  SWITZERLAND THE SCEINCE DAY WAS DEDICATED TO OUR EX PRESIDENT APJ ABDUL KALAM
 In 2006 the father of india's missible programme had visited to switzerland. When he arrivef there Switzerland declared that 26th as science day.

5)  INDIA'S FIRST PRESIDEND TOOK 50% OF HIS SALARY 
 Dr. Rajendra prashad when he appoint for presedent he took only 50% of his salary and told that he didn't required more than that.

6)  THE FIRST ROCKET OF INDIA WAS TRASPORT ON CYCLE
 In thirivananthapuram kerela first rocket was transported on bycycle to the Thumba launching station .

7) INDIA IS THE SECOND LARGEST ENGLISH SPEAKING COUNTRY 
 After USA india is the second largest english speaking country. 125 million people spoke english which is only 10% of our population.

8) INDIA WAS THE FIRST COUNTRY WHICH CONSUME SUGAR.
 India was the first country who develop purifing sugar. Many visitors of abroad learnt to purify sugar.

8) RABINDRA NATH TIGORE IS AN INDIAN WHO WROTE THE NATIONAL ANTHEM OF BENGLADESH.
 Rabinda nath Tigore is credited not only our anthm "JANA GANA MANA " . He also write Begladeshi Anthem "AMAR SONAR BANHLA "

9) OUR HUMAN CALCULATOR 
 Shakuntla devi was first woman who calculate 13 digit numbers 7,686,369,774,870×2,465,099,754,779 which were pocked randomly. And she answered correctly in 2i sec.

10) VISWANATH ANAND WON CHESS IN THREE DIFF FORMATS 
 Viswanath Anand was the first player who won chess in the world championship in three diff. formats ... knockout , tournament and match.


 DIVYA BHUSHAN

केंद्र लोकसेवा आयोग की तरफ युवाओ के कदम!

केंद्र लोकसेवा आयोग की तरफ युवाओ के कदम!

पिछले कुछ सालो से केंद्र लोकसेवा आयोग और केंद्र सेवा परीक्षाओ की ओर युवापीढ़ी का आकर्षण बढ़ता दिखाई जा रहा है जो की बहुत प्रशंसनीय बात है. आजके युवक सिर्फ कॉर्पोरेट और प्राइवेट क्षेत्रो में काम करनेमे अपनी रूची ना दिखाते हुए डिफेंस सर्विसेस और केंद्र सेवा जैसी कठिन और हर कदम पर चुनौतियों भरी सेवाओ में काम करने की भी इच्छा दिखा रहे है. समाज के प्रति अपना कर्तव्य निभाने और अपना व्यक्तिमत्व विकास बढ़ाने हेतु युवा पूरी तरह से जी जान लगाकर मेहनत करते नजर आ रहे है. महाविद्यालयीन पढाई करते समय से ही इन सेवाओ में कार्यरत होने की मंछा युवाओ में देखी जा रही है. इसीलिए युवा इन सेवाओ से जुडी परीक्षा के तैयारी में महाविद्यालयीन शिक्षण लेते समयसे ही जुड़ जाते है. केंद्रीय लोकसेवा आयोग, डिफेंस सर्विसेस, एनडीए- एनए, रेल्वे रिक्रुइटमेंट बोर्ड, स्टाफ सिलेक्शन कमीशन इन जैसी कई परीक्षाओ में सफलता पाने के लिए विद्यार्थी परीक्षाओ की माध्यम से अपनी किस्मत आजमा रहे है. हर साल केंद्र सरकार की रिक्त पदों की भर्तियो के लिए केंद्र लोकसेवा आयोग परीक्षाए आयोजित करता है उनमें अपनी एक जगह बनाने हेतु लाखोसे युवा इन परीक्षाओ मे हाजरी लगाते दिखाई जाते है. उनमेसे सिर्फ कुछ हजार ही युवक-युवतियां चुने जाते है और आखिर में वही इन सेवामें शामिल होते है जो इन सर्विसेस मे काम करने काबिल हो. आजकल प्राइवेट और कॉर्पोरेट क्षेत्रो में बड़े पैमाने में रोजगार उपलब्ध होता जा रहा है. परंतु केंद्र लोकसेवा आयोग परीक्षाओ की पढाई कर रहे युवको के हिसाब से असली काम करने का आनंद तो उसी क्षेत्र मे है जिसमे से हम अपने देश की सेवा में कुछ योगदान दे सके. इसी वजह से बडे पैमाने पर केंद्र लोकसेवा आयोग की परीक्षा के लिए युवाओ की भीड़ दिखाई देती है. यूपीएससी भारत देश की सबमे कठिन और युवको को पदपद पर चुनौतियां देने वाली परीक्षा मानी जाती है. इन परीक्षाओ की पढाई के दौरान विद्यार्थी जिस अनुभव से गुजरते है वे अनुभव उन्हें उनके पुरे जीवनभर काम आता है. इनमे वही सफल होते है जो कड़ी निष्ठा और ईमानदारी से परीक्षा देते है. इन सेवाओ मे भारतीय प्रशासकीय सेवा, भारतीय पुलीस सेवा, पोस्टल सेवा, राजस्व सेवा, रेल्वे सेवा, वनसेवा आदि सेवाए मौजुद है. जब युवाओ से पूछा गया की केंद्र लोकसेवा आयोग की तरफ उनका आकर्षण क्यों बढ रहा है तब जवाब मिला की जो व्यक्ति अपने समाज और अपने देश के लिए कुछ करने की इच्छा हो उनके लिए इन सेवाओ में काम करना गर्व की बात होगी. आजकल सभी क्षेत्र जैसे की अभियांत्रिकी, वैद्यकीय, विज्ञान क्षेत्र, कलाक्षेत्र, वाणिज्य क्षेत्र अन्य कई क्षेत्रों में शिक्षण लेने वाले विद्यार्थी यूपीएससी की परीक्षा देते है. कुछ युवाओ के लिए तो दिन की शुरुआत यूपीएससी की पढाई से और ख़त्म भी उसीसेही होती है. युवको का सेवा में कार्यरत होने के लिए देखा जा रहा जोश और जब तक सिलेक्शन नही हो जाता तब तक कि गयी कोशिशे देखकर ऐसा लगता है की समाज के प्रति जो उनका कर्तव्य है उसे निभाने हेतु वे तत्पर हो रहे है. सभी इन परीक्षाओ में सफल नही होते पर फिर भी सामाजिक कार्यो में अपना योगदान मिलना चाहिए इस हेतु से अनेक युवा आज अपनी भागदौड़ भरी जिंदगी से वक्त निकालकर अनेक सामाजिक संस्थाए, एनजीओ, सोशल क्लब जैसी समाज के लिए कार्यरत संस्थाओ में काम करके समाज कार्यो में अपना योगदान दे रहे है जो की एक बहुत ही गौरवतलब बात है. 

 सौरभ झेंडे

सीखते जाना है

सीखते जाना है

ज़िन्दगी के हर मोड़ पर कुछ न कुछ सीखते जाना है
गली के नुक्कड़ से लेकर आसमान तक
जहाँ नज़रें उठाओ 
कुछ न कुछ सीखने को मिल जाता है ।

एक बच्चे को देखा , 
उसकी मासूमियत मन को मोह गयी 
एक चींटी को देखा 
उसकी पहाड़ चड़ने की जद्दो जहद 
दिल को छू गयी
एक चील को देखा
उसकी तरह ऊंचा उड़ने की ख्वाइश 
मन को हो गयी ।

चलते चलते राह में उत्तम बनने का तो पता नहीं
पर एक कोशिश ज़रूर करते जाना है 
सही गलत का तो पता नहीं
पर अच्छा बनने की होड़ में
हर किसी से कुछ न कुछ सीखते जाना है ।
                                     
आरज़ू अग्रवाल