"सैराट" : मराठी सिनेमा की
अंतराष्ट्रीय उड़ान
भारत वह देश है जिसमें अपने पूर्वोंजो की परम्परा पर हुनर करने की
होढ़ लगती है ! लेकिन जो रीती रिवाज मनुष्य बनाने में बाधक है , उसे जान बूझकर नजर अंदाज किया
जाता हैं । हाल फिलहाल मे मराठी फिल्म ”सैराट” ने देशभर मे ही नही कई विदेशी
फिलमोत्सवो मे भी धमाल मचा रखा है, महाराष्ट्र मे फिल्म व मनोरंजन tax न होने और बॉलीवुड फिल्मो के एक
तिहाई टिकट दर होने के बावजूद यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर नए नए करिश्माई रेकॉर्ड
बनाते हुए हिन्दी बॉलीवुड फिल्मो को भी टक्कर दे रही है और बड़ी बात यह की सबसे ज्यादा कमाई
करने वाली मराठी फिल्म भी बन गयी है । फिल्म की लीड ”रिंकू राजगुरु” को राष्ट्रीय पुरस्कार मिलना भी
फिल्म की गाथा मे भर है, दिग्दर्शक
नागराज मंजुले की यह तीसरी फिल्म है, पहली शॉर्ट फिल्म 'पिस्तुल्या' को भी राष्ट्रीय पुरस्कार का
गौरव प्राप्त हुआ था,ततपश्चयात
पहली फीचर फिल्म 'फंड्री' ने भी 61वे राष्ट्रीय पुरस्कार को अपने
नाम किया और सैराट ने भी वही क्रम जारी रखा है। फिल्म देश की ऐसी पहली फिल्म है
जिसका संगीत देश के बाहर हॉलीवूड मे रेकॉर्ड हुआ है जिसका निर्देशन अजय-अतुल ने
किया है। सबसे बड़ी बात फिल्म का लगभग सारा कास्ट-क्रू पहली दफा फिल्मी पर्दे पर
काम कर रहा है और सभी खेत खलियान और गाओं से ताल्लुकात रखते हैं इस कड़ी मे फिल्म
के लीड्स परश्या यानी की आकाश थोसर और आर्ची यानी की रिंकू राजगुरु का अभिनय सच मे
अप्रितम है । फिल्म महाराष्ट्र के सोलापूर से है,कहानी वही की है और शूट लोकेशन भी यही
है। खैर... सैराट वह फ़िल्म है जिसे देखकर अपनी अन्तरात्मा थोड़ी सी तो रो लेती हैं
! जीवन की इस आपा धापी में सब अपनी जिंदगी बेहतर बनाने में जुटे है ,लेकिन "बेहतर" का
मतलब सिर्फ खोखली आधुनिकता है जो समाज में प्रतिस्पर्धी बनाने में जुट गई है! वो
अपनी जात या अपनी वर्ग व्यवस्था अभी तक तोड़ नही पाई जो सदियों पहले से शुरू है! उस
व्यवस्था में इंसानियत का दम तो घुट रहा है लेकिन भीड़ के कारण उसका शोर कही गूंज
नही पाता हैं ! हम उस समाज से ताल्लुख रखते है जो अपने बच्चों को शिक्षा तो आधुनिक
देते है लेकिन टेक्नॉलोजो की इस दुनिया में उसे अपने धर्म और जात में जखड़कर अपने
पुराने और खोकले विचारों की जंजीरों से बांध देते है ! ये वो समाज है जो उस फ़िल्म की
संगीत की धुन पर नाच कर अपनी तसल्ली कर लेता है लेकिन बदलने का नाम नही लेता !
"आर्ची" और "परश्या" उन समाज का प्रतिनिधित्व करते है जो रोज
मर्रा की जिंदगी से थक चुके है फिर भी प्रेम का एहसास उनमे फुट फुट कर भरा है !
तमाम मुश्किलों का सामना करते हुए भी शायद ही ऐसे कम लोग होते है जिसके साथ उम्मीद
का दामन टिका रहता है ! जूठी प्रतिष्ठा उन सब पर हावी हो जाती है जिसने उस
प्रतिष्ठा को ललकारने का साहस किया है ! सच तो यह है की विश्व में हिंसा भरी हुई है जो किसी ना किसी रूप में
अपनी असलियत दिखाती हैं ! फ़िल्म उन वास्तविक समाज का प्रतिनिधत्व भी करती है जो
अपने देश में निषेधात्मक क्रिया करतत्वो से भरी है ! जिंदगी शुरू भी नही हो पाती
है और ऐसी डगमगाती है जहाँ नावं को कई भी किनारा होने की गुंजाईश नही होती.फ़िल्म
ने उसी समाज की धज्जिया उड़ाई है जो अपने आप पर गर्व महसूस करता है ! आदमी की
क्रूरता इतनी भयानक है की एक फ़िल्म से अपनी राय इतनी बदलने की संम्भावना बहुत ही
कम है ! फिर भी फ़िल्म वह कड़ी है जो मनुष्य को मनुष्य बनाने में मददगार है !
निर्देशक नागराज मंजुले ने व्यक्ति के उन गुणों को उजागर किया है जो किसी मर्यादा
में प्रेम को बांधने में असफल रहा है ! आखिर इस उम्मीद के साथ फ़िल्म "सैराट” बहुत बहुत बधाई देने की पात्र
है की बॉक्स ओफिस में सुपर डुपर हिट होने से पडदे पर व्यक्तित्व के और गहरे रूप
भविष्य में देखने को दर्शकों को मिलेंगे !
राहुल खंड़ालकर
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